गुरुवार, 2 अक्तूबर 2008

कि कहु मिथिलाक हाल....हम सब सरिपहुँ छी बेहाल...एकनो तक अछि हमरा सबलग बाबाक नामक बखारि...जाहि सं नै क सकैत छी सबटा काज॥त यैह ने हैत हाल....ककरो एतवाक समय नै अछि जे सोचि सकि अपन संस्कृति आ संस्कारक विषय मे...त यैह ने हैत हमर सबहक हाल...जँ कहियो कियौ गाम जैत हैब त देखैत हेबै जे कैकटा गरीब बच्चा एखनो धरि पैसाक अभाव मे मैट्रिक फार्म नै भरि पबैत छैथ...लेकिन कि कियो छैथ ताहि सँ चिन्तित...शायद नै....लेकिन शहरक कल्चर देखू जे जं हम सब एक दोसरक घर जाई छी त खूजैत अछि महग शराबक वोतल...वा जं रखैत धी अहि सब सं परहेज त 50टाका के ठंडो सं चलि जाईया काज...लेकिन हमरा सब मे सँ शायदे कियो इ गप्प सोचि पाबैत छी ..जे इ तमाम चीज अपना सबहक औकाद सं बाहरक चीज अछि....कियेक त हम सब मैथिल छी....हमरा सब मे ककरो अनका सं बेसी ईगो होइया...जाहि कारण काफी नकसान सहैत छी...लेकिन अहि सब सं बेखबर हमरा सब एखनो बाबाक बखारीक गप्प कर सं नै कतरैत छी....